गोत्र द्वारा इतिहास
रामानन्द (रामावत सम्प्रदाय )
क्र.सं. द्वारा गौत्र
1 अग्रावत
2 अनन्तानन्दी
3 अनुभवानन्दी –
लश्करी गौत्र के बारे सक्षिप्त टिप्पणी निम्नलिखित है।।
लश्करी गौत्र के अनुसार लश्करी चार है परंतु मुख्य रूप से "अनुभावानंदी"है बाकी के तिन निम्नलिखित है (1) .भावानंदी (2)सुखानंदी (3) सुरसरानंदी
लश्करी गौत्र का उदय
जगद्धगुरू वीरजानंदाचार्यजी के परम् एवं कृपापात्र शिष्य श्रीबालानंदाचार्यजी महाराज के चरण कमलो से इस गौत्र का उदय हुआ है।
बात उस समय की है जब शैव ब्राह्मणो ने वैष्णव ब्राह्मणो पर अत्याचार क्या यह बात गुरूदेव को पता नही था परंतु जब गुरूदेव को पता चला की वैष्णवो पर घोर अत्याचार हो रहा है तब गुरूदेवश्रीबालानंदाचार्यजी चौकी पर विराजमान होकर अपने मष्त पर उध्व्रपुड्रतिलक कर रहे थे उस समय तिलक में रक्त तिलक अर्थात् कुंकुम् का तिलक जल्दबाजी न क्या बल्कि उस जगह शुष्क चंदन का तिलक कर दिया ओर शैव ब्राह्मणो पर यौद्ध कर दिया।।
ओर उस युद्ध में समस्त वैष्णव (लश्करी)अर्थात् विजय हो गये।।
इस कारण उस समय गुरू देव बालानंदजी के कहने से इस गौत्र का नाम "लश्करीअनुभावानंदी"पडा ओर उस तिलक का नाम भी "लश्करीतिलक "पड गया।।
आज भी अनुभावानंदीयो को लश्करी कहा जाता है ओर आज भी लश्करी गौत्र के अनुयाई यही तिलक करते है।।
लश्कर का अर्थ है सेना, व लश्करी का अर्थ है सैनिक !
प्रश्न है कि लश्करी क्या है व कौन हैं तथा इनका नाम लश्करी क्यों पड़ा ?
लश्करी वे साधु, सन्यासी थे जो अनुभवानन्दाचार्य जी द्वारा गठित लश्कर (सेना) में सम्मीलित थे,
बात उस समय की है जब दशनामी, शैव व शाक्त वैष्णव धर्म का समूल विनाश करने व उसे दबाने के लिये वैष्णवों के रक्त के प्यासे थे, वे वैष्णवजन को जहां मिलते जान से मार डालते थे !
इन परिस्थितियों में ज.गु.श्री रामानन्दाचार्य जी के प्रशिष्य श्री अनुभवानन्दाचार्य ने लश्कर (सेना) की स्थापना की ताकी इन शैवो, दशनामीयों व शाक्तों से वैष्णव धर्म की रक्षा की जा सके !
इस लश्कर में श्री भावानन्दाचार्य जी के शिष्य, अनुभनानन्दाचार्य जी के शिष्य, सुरसुरानन्दाचार्य जी के शिष्य, दानोदराचरार्य जी के शिष्य, हनुमदाचार्र्य जी के शिष्य, व केवलरामाचार्य जी के शिष्य, क्रमश: भावानन्दी, अनुभवानन्दी, सुरसुरानन्दी, धून्ध्यानन्दी, हनुमानी, व कुबावत आदि को मिलाकर संयुक्त नाम लश्करी पड़ा !
जिनके द्वाराचार्य जी भी हैं व द्वारा स्थान भी !
वर्तमान इस गौत्र कि द्धारापिठ जयपुर के चादँपोल में "बालानंदमठ" के नाम से प्रसिद्ध है ओर वर्तमान आचार्य जगद्धगुरू श्री1008लक्ष्मणनंदाचार्यजी है
इनके गुरू श्रीरामचरणाचार्यजी थे।।
बालानंदमठ की परम्परा-
बालानंदाचार्यजी
गौविन्दनंदाचार्यजी
गंभिरानंदाचार्यजी
सेवानंदाचार्यजी
रामानन्दाचार्यजी
ग्यानानंदाचार्यजी
माधवनंदाचार्यजी
रामकृष्णनंदाचार्यजी
रामचरणानंदाचार्यजी
लक्ष्मणनंदाचार्यजी महाराज
जय श्रीराम बालानंदाचार्यजी की मठ परम्परा
अब अनुभावानंदाचार्यजी मठ परम्परा
अनुभावानंदाचार्यजी
कमनंनाचार्यजा
विमलानंदाचार्यजी
रामसुधिरानंदाचार्यजी
विचित्रानंदाचार्यजी
विठ्ठलानंदाचार्यजी
वल्लभानंदाचार्यजी
ब्रह्मानंदाचार्यजी
विरजानंदाचार्यजी
बालानंदाचार्यजी
वल्लभानंदाचार्यजी द्धारा सग्रहित 444श्लोको का "विष्णु भक्ति चन्द्रोदय"आज भी बालानंदमठ में पुस्तकालय में उपलब्ध है।
4 अलखानन्दी
5 कर्मचन्दी
6 कालू जी
7 कीलावत
8 कुबावत
9 खोजी जी –
खोजीजी गौत्र की जानकारी -श्रीसम्प्रदाय सरोज विभाकर आचार्य-चूणामणि श्रीखोजी द्धारापिठ संस्थापक जगद्धगुरू सर्वतन्त्र श्रीचतुर्दास,श्रीराघवेन्द्रदासाचार्य चरण आदिक नामधेयवान अन्नत स्वामी श्रीखजोजी महाराज श्रीसम्प्रदाय के महान् संत हो गये है।आपका जन्म सोलहवीँ सदी में मार्गर्शीष में सुदी पुर्णीमा के दिन राजस्थान के किशनगढ जिले के अन्तर्गत ईटाखोई ग्राम निवासी वत्स गोत्रिय श्रीचेतनदासजी लापस्या जोशी के यहाँ एक श्रीवैष्णव महात्मा की सेवा के प्रतिफल स्वरूप हुआ था आप अन्नय श्रीसद्गरू चरणाविन्द निष्ठ भावुक प्रविण महापुरूष थे।
श्रीस्वामीजी खोजीजी महाराज एसे ही निर्मल संत थे,आपके श्रीगुरूदेव स्वामीमाधवदासजी महाराज बडे ही प्रभु सेवा परायण संत थे,आपने प्रथम ही सभी शिष्यों को सुचित कर रखा था कि,"में जब दिव्यधाम में आराध्य श्रीसितारामजी की सेवा में प्राप्ति होगी तब मंदिर में घडीघण्टे अपने आप ही बज उठंगे"परंन्तु आपके देहावासन पश्चात् ऐसा नही हुआ।इसका कारण अपने शिष्य की निष्ठा का प्रभाव विस्तार करना था ओर भक्त की अन्तिम अणु मात्र भी अभिलाषा प्रभु पुर्ण करते है यह प्रत्यक्ष दिखलाना था।
श्रीराघवेन्द्रदासजी(खजोजी)महाराज कही बाहर गये थे।प्रभु कृपा से ठीक उसी समय स्थान में आ पहुचेँ। सभी गुरूभाईयो का दुखः ओर सन्देह निवारण करने की सद्धावना से आप श्रीगुरूदेव के समीप् ही शयन करके देखे तो आम्र वृक्ष पर एक रसभरा सुन्दर पका फल दृष्टिगत हुआ,आपसे उसे उतराकर अमिनाआ करवाया ओर प्रभु को अर्पण किया।उसी समय एक "जीव"निकला जो प्रभु के सम्मुख मुक्त हो गया,मन्दिर के घडी घण्टे अपने आप बज उठे,श्रीगुरूदेव का जय जय कार हुआ,ओर तभी सभी संतो ने आप का नाम-श्रीखजोजी महाराज रख दिया ,श्रीगुरूदेव को प्रभु प्राप्ति का कारण अपने खोज निकाला इसलिए आप इसी उपनाम से श्रीखजोजी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुए।।
आपके दोहे-:
"खोजी"खोजत् ग्रन्थ बहु-मिल्यो सन्त मत सार।
ले दिक्षा श्रीवैष्णवी,ऊचँ-निच भव पार।।
10 जंगीजी
11 लाहारामी
12 टीलावत
13 तनतुलसी
14 दिवाकर
15 देवमुरारी
16 धूंध्यानन्दी
17 नरहर्यानन्दी
18 नाभाजी
19 पीपावत
20 पूर्ण बैराठी
21 भगवन्ननारायणी
22 भड़गी (भृंगी)
23 भावानन्दी
24 मलूकिया
25 योगानन्दी
26 रामकबीर
27 राधवचेतनी
28 रामथंमणा
29 रामरामायणी
30 रामरावली
31 रामरंगी
32 लालतुरंगी
33 सुखानन्दी
34 सुरसुरानन्दी
35 हठीनारायणी
36 हनुमानी
निम्बार्क सम्प्रदाय
क्र.सं. द्वारा गौत्र
37 केशवव्याणी
38 घमंडी
39 चित्रानागा
40 चर्तुभुजी
41 तत्ववेदी
42 परशुरामी
43 मधवकाणी
44 राधावल्लभी
45 लपरागोपाली
46 वीरमत्यागी
47 शोभावत
48 ऋषिकेेषवी
वल्लभाचार्य (विष्णु स्वामी)
क्र.सं. द्वारा गौत्र
49 गोकुलानन्दी
50 विट्ठलानन्दी
श्री मध्वचारी (गौडि़य)
क्र.सं. द्वारा गौत्र
51 नित्यानन्दी
52 श्यामानन्दी